सर गुज़िश्त आज़ाद बख्त बादशाह की
एक रोज़ एक मंज़िल
में मंझले भाई ने मज़कूर किया की एक फ़रसख़ उस मकान से चश्मा जारी है जैसे सलसबील के और
मैदान में खुद रो कोसो दूर लाला व नाफ़रमान
और नरगिस व गुलाब फूला है ,सच में अजब मकान सैर
का है। अगर अपना इख़्तियार होता तो कल वहा जाकर तफरीह तबियत का करते है और मांदगी(उदासी)
भी रफा होती। मैं बोला की साहब मुख़्तार है ,फरमाओ तो कल के दिन मुक़ाम करे और वहा चल कर सैर करते फिरे।
यह बोले : मैंने हुक्म किया की सारे क़ाफ़ले
में पुकार दो की कल मुक़ाम है। और बकावल को कहा की हाज़री क़िस्म बा क़िस्म की तैयार कर कल सैर को चलेंगे। जब सुबह हुई इन दोनों बिरादरों ने कपडे पहन ,कमर
बाँध कर मुझे याद दिलाया की जल्द ठन्डे ठन्डे
चलिए और सैर कीजिये। मैंने सवारी मांगी। बोले की पा पियादा जो लुत्फ़ सैर का होता है ,सो सवारी में मालूम ? नज़रो को कह
दो ,घोड़े डोरिया कर ले आये।
दोनों गुलामो ने क़हवा दान ले लिया और साथ हुए। राह में तीर अंदाज़ी करते हुए चले जाते थे। जब क़ाफ़ले से दूर से निकल गए एक गुलाम को उन्होंने किसी काम को भेजा। थोड़ी दूर आगे बढ़ कर दूसरे को भी उसके बुलाने को रुखसत किया। कमबख्ती जो आयी , मेरे मुंह में जैसे किसी ने मुहर दे दी। जो वह चाहते थे सो करते थे और मुझे बातो पर चाय लिए जाते थे ,मगर यह कुत्ता साथ रह गया। बहुत दूर निकल गए ,न चश्मा नज़र आया न गुलज़ार ,मगर एक मैदान पुर खार (कांटा) था। वहा मुझे पेशाब लगा मैं हाजत करने को बैठा। अपने पीछे तलवार की चमक की सी देखि मुड़ कर देखा तो मंझले भाई साहब ने मुझ पर तलवार मारी की सर दो पारा हो गया। जब तलक बोलू की ए ज़ालिम ! मुझे क्यू मारता है ? बड़े भाई ने शाने पर लगाई .दोनों ज़ख्म कारी लगे मैं गिर गया। तब इन दोनों बे रहमो ने बा खातिर जमा मुझे चूर ज़ख़्मी किया और लहू लुहान कर दिया। यह कुत्ता मेरा अहवाल देख कर उन पर भपका उसको भी खाएल किया। बाद उसके अपने हाथो से अपने बदनो में ज़ख्मो के निशान किये और सरापा बरहना क़ाफ़ले में गए और ज़ाहिर किया की हरामियों ने उस मैदान में हमारे भाई को शहीद किया और हम भी लड़ भिड़ कर ज़ख़्मी हुए। जल्दी कोच करो नहीं तो अब कारवां पर गिर कर सबको नांगलिया लेंगे। क़ाफ़ले के लोगो ने बद्दुओ का नाम जो सुना वही बदहवास हुए और घबरा कर कोच किया और चल निकले।
मेरे क़बीले ने सुलूक और खुबिया इनकी सुन रखी थी ,जो जो मुझसे दगाये की थी। यह वारदात इन झूटो से सुन कर ,जल्द खंजर से अपने आपको हिलाक किया और जान चली गयी। ए दरवेशो !उस ख्वाजा सग परसत ने जब अपनी कैफियत और मुसीबत इस तरह से यहाँ तलक कही ,सुनते ही मुझे बे इख़्तियार रोना आया। वह सौदागर देख कर कहने लगा की क़िब्ला आलम ! अगर बे अदबी न होती तो ब्रह्ना हो कर मैं अपना सारा बदन खोल कर दिखाता। तिस पर भी अपनी रास्ती पर गिरहबान मोंढे तलक चीर कर दिखाया। सच में चारा निगल उसका बगैर ज़ख्म के साबित न था। मेरे हुज़ूर सर से अमामा उतारा ,खोपड़ी में ऐसा बड़ा गढ़ा पड़ा था की एक अनार समूचा इसमें समावे। अरकान दौलत जितने हाज़िर थे ,सबने अपनी आँखे बंद कर ली ,ताक़त देखने की न रही।
फिर ख्वाजा बोला की बादशाह सलामत ! जब यह भाई अपनी हाज़री में मेरा काम तमाम करके चले गए एक तरफ मैं और एक तरफ यह सग मेरे नज़दीक ज़ख़्मी पड़ा था। लहू इतना बदन से गया की ताक़त और होश कुछ बाक़ी न था। क्या जानू दम कहा अटक रहा था की जीता था। जिस जगह मैं पड़ा था। विलायत सरनदीप की सरहद थी और एक शहर बहुत आबाद उसके क़रीब था। उस शहर में बड़ा बुत खाना। था और वहा के बादशाह की एक बेटी थी ,निहायत क़ुबूल सूरत और साहब जमाल।
अक्सर बादशाह और शहज़ादे उसके इश्क़ में खराब थे। वहा रस्म हिजाब की न थी। उससे वह लड़की तमाम दिन हम जोलियो के साथ सैर शिकार करती फिरती। हमसे नज़दीक एक बादशाही बाग़ था। उस रोज़ बादशाह से इजाज़त लेकर उसी बाग़ में आयी थी। सैर की खातिर उस मैदान में फिरती फिरती आ निकली ,कई कनीज़े साथ सवार थी। जहा मैं पड़ा था ,आये। मेरा कराहना सुन कर पास खड़ी हुई.मुझे इस हालत में देख कर वे भागे और शहज़ादी से कहा की एक मर्द और कुत्ता लहू में शरा बोर पड़ा है। उनसे यह सुन कर आप मलका मेरे सर पर आयी ,अफ़सोस खा कर कहा : देखो तो कुछ जान बाक़ी है ? दो चार दायियो ने उतर कर देखा और अर्ज़ की : अब तलक तो जीता है। फ़ौरन फ़रमाया की अमानत कालीचे पर लिटा कर बाग़ में ले चलो।
वहा ले जाकर ,जर्राह सरकार को बुला कर मेरे और मेरे कुत्ते के इलाज की खातिर बहुत ताकीद की और उम्मीद वार इनआम व बख्शीश का किया। उस हज्जाम ने सारा बदन मेरा पोंछ पांछ कर ख़ाक व खून से पाक किया। और शराब से धो कर ज़ख्मो को टाँके दे कर ,मरहम लगाया और मुश्क का अर्क़ पानी के बदले मेरे हलक़ में डाला। मलका आप मेरे सरहाने बैठी रहती और मेरी खिदमत करवाती और तमाम दिन रात में दो चार बार कुछ शोरबा या शरबत अपने हाथ से पिलाती। उसके बाद मुझे होश आया तो देखा की मलका निहायत अफ़सोस से कहती है : किस ज़ालिम खून ख्वार ने तुझ पर यह सितम किया ,बड़े बुत से भी न डरा ! बाद दस रोज़ के अर्क और शरबत और माजूनो की ताक़त से मैंने आंख खोली ,देखा तो इंद्र का उखाड़ मेरे आस पास जमा है और मलका सरहाने खड़ी है। एक आह भरी और चाहा की कुछ हरकत करू ,ताक़त न पायी। बादशाह ज़ादी मेहरबानी से बोली की ए अजमी ! खातिर जमा रख ,कुढ़ मत ,अगरचे किसी ज़ालिम ने तेरा यह अहवाल किया लेकिन बड़े बुत ने मुझको तुझ पर मेहरबान किया है ,अब चंगा हो जायेगा।
क़सम उस खुदा की जो वाहिद व ला शरीक है। मैं उसे देख कर फिर बे होश हो गया। मलका ने भी दरयाफ्त किया और गुलाब पाश से गुलाब अपने हाथ छिड़का। बीस दिन के अरसे में ज़ख्म भर आये और अंगूर कर लाये। मलका हमेशा रात को जब सब सो जाते मेरे पास आती और खिला पीला जाती। गरज़ एक चिल्ले में ग़ुस्ल किया। बादशाह ज़ादी निहायत खुश हुई। हज्जाम को इनआम बहुत सा दिया और मुझको पोशाक पहनवाए। खुदा के फ़ज़ल से और खबर गीरी और सई से मलका की ,खूब चौक चौबंद हुआ। और बदन निहायत तैयार हुआ और कुत्ता भी फर्बा हो गया। रोज़ मुझे शराब पिलाती और बाते सुनती और खुश होती। मैं भी एक आध नक़ल या कहानी अनोखी कह कर उसके दिल को बहलाता।
एक दिन पूछने
लगी की अपना अहवाल तो बयां करो की तुम कौन हो और यह वारदात तुम पर क्यू कर हुई ?मैंने
सारा माजरा अपना शुरू से आखिर तक कह सुनाया।
सुन कर रोने लगी और बोली की अब मैं तुझसे ऐसा
सुलूक करुँगी की अपनी सारी मुसीबत भूल जाओगे। मैंने कहा खुदा
तुम्हे सलामत रखे तुमने नए सिरे से मेरी जान बख्शी की है। अब मैं तुम्हारा हो रहा हु
,वास्ते खुदा के इसी तरह हमेशा मुझ पर अपनी मेहरबानी की नज़र रखिये,. गरज़ तमाम रात अकेली मरे पास बैठी रहती सोहबत रखती। और दिन दायी
उसकी भी साथ रहती। हर एक तौर का ज़िक्र मज़कूर
सुनती और कहती। जब मलका उठ जाती और मैं तनहा होता ,तहारत(पाकी ) कर ,कोने में छिप कर कर नमाज़ पढ़ लेता।
एक बार ऐसा इत्तेफ़ाक़ हुआ की मलका अपने बाप के पास गयी थी ,मैं खातिर जमा से वज़ू करके नमाज़ पढ़ रहा था की अचानक शहज़ादी दायी से बोलती आयी की देखे अजमी इस वक़्त क्या करता है सोता है या जागता है ? मुझे मकान पर जो न देखा ताज्जुब में हुई की एह ! यह कहा गया ? किसी से कुछ लग्गा तो नहीं लगाया। कोना खड़ा देखने लगी और तलाश करने लगी। आखिर मैं जहा नमाज़ कर रहा था ,वहा आ निकली उस लड़की ने कभी नमाज़ काहे को देखि थी। चिपकी खड़ी देखा की। जब मैंने नमाज़ तमाम करके दुआ के लिए हाथ उठाये और सजदे में गया ,बे इख़्तियार खिलखिला कर हंसी और बोली : क्या यह आदमी सौदाई हो गया ,यह कैसी कैसी हरकते कर रहा है ?
मैं हसने की आवाज़ से दिल में डरा। मलका आगे आकर पूछने लगी की ए अजमी ! यह तू क्या करता था ? मैं कुछ जवाब न दे सका। उसमे दायी बोली : बल्लिया लू , तेरे सदके गयी ,मुझे यु मालूम होता है की यह शख्स मुस्लमान है और लात मिनात का दुश्मन है अनदेखे खुदा को पूजता है। मलका ने यह सुनते ही हाथ हाथ पर मारा ,बहुत गुस्सा हुई की मैं क्या जानती थी की यह तुर्क है ,और हमारे खुदाओ से मुनकर है। तभी हमारे बुत के गज़ब में पड़ा था। मैंने न हक़ उसकी परवरिश की और अपने घर में रखा। यह कहती हुई चली गयी। मैं सुनते ही बदहवास हुआ की देखिये अब क्या सुलूक करे। मारे खौफ के नींद उचट हो गयी। सुबह तक बे इख़्तियार रोया क्या और आंसुओ से मुंह धोया क्या।
तीन दिन रात इसी खौफ व्रजा में रोते गुज़रे ,हरगिज़ आँख न झपकी। तीसरी शब् मलका शराब के नशे में मख्मूर और दायी साथ लिए मेरे मकान पर आयी। गुस्से में भरी हुई और तीर कमान हाथ में लिए बाहर चमन के किनारे बैठी। दायी से पियाला शराब का माँगा ,पी कर कहा : दैय्या ! वह आजमी जो हमारे बड़े बुत के क़हर में गिरफ्तार है मरा या अब तक ज़िंदा है ? दायी ने कहा : बल्लेया लू ,कुछ दम बाक़ी है। बोली की अब वह हमारी नज़रो से गिरा .लेकिन कह की बाहर आये। दायी ने मुझे पुकारा ,मैं दौड़ा। देखु तो मलका का चेहरा मारे गुस्से के तमतमा रहा है और सुर्ख हो गया है। रूह कालिब में न रही। सलाम किया और हाथ बाँध कर खड़ा हुआ। गज़ब की निगाह से मुझे देख कर दायी से बोली : अगर मैं दीन के दुश्मन को तीर से मारु ,तो मेरी खता बड़ा बुत माफ़ करेगा या नहीं ? यह मुझसे बड़ा गुनाह हुआ है की मैंने इसे अपने घर में रख कर खातिर दारी की।
दायी ने कहा : बादशाह ज़ादी की क्या क़ुसूर है ? कुछ दुश्मन जान कर नहीं रखा तुमने उस पर तरस किया। तुमको नेकी के बदले नेकी मिलेगी और यह अपनी किये का फल बड़े बुत से पाक रहेगा। यह सुन कर कहा : दायी : उसे बैठने को कह। दायी ने मुझे इशारत की की बैठ जा। मैं बैठ गया। मलका ने और जाम शराब का पिया और दायी से कहा की इस कम्बख्त को भी एक पियाला दे ,तो आसानी से मारा जाये। दायी ने जाम दिया माइन बिला उज़्र पिया और सलाम किया। हरगिज़ मेरी तरफ निगाह की मगर किन आखियो से चोरी चोरी देखती थी। जब मुझे सर्वर हुआ कुछ शेर पढ़ने लगा।
सुन कर मुस्कुरायी और दायी की तरफ देख कर बोली : क्या तुझ्र नींद आती है ? दायी ने मर्ज़ी पाकर कहा की है कहा की मुझ पर ख्वाब का ग़लबा किया है। वह तो रुखसत हो कर जहन्नम वासिल हुई। बाद एक दम के मलका ने पियाला मुझसे माँगा। मैं जल्द भर कर रु बा रु ले गया। एक अदा से मेरे हाथ से लेकर पी लिया। तब मैं क़दमों पर गिरा। मलका ने हाथ मुझ पर झाड़ा और कहने लगी : ए जाहिल ! हमारे बड़े बुत में क्या बुराई है जो गायब खुदा की परस्तिश करने लगा ? मैंने कहा : इंसाफ शर्त है गौर फरमाइए की बंदगी के लायक वह खुदा है की जिसने एक क़तरे पानी से तुम सार का महबूब पैदा किया ,और यह हुस्न व जमाल दिया की एक आन में हज़ारो इंसान के दिल को दीवाना कर डालो। बुत क्या चीज़ है की कोई उसकी पूजा करे ? एक पत्थर को संग तराशो ने घढ़ कर सूरत बनाई और दाम अहमक़ो (बेवक़ूफ़) के वास्ते बिछाया। जिनको शैतान ने वरग़लाना है वे मसनूह को साने जानते है। जिसे अपने हाथो से बनाते है ,उसके आगे सर झुकाते है। और हम मुस्लमान है जिसने हमें बनाया है ,हम उसे मानते है। उनके वास्ते दोज़ख हमारे लिए बहिश्त बनाया है। अगर बादशाह ज़ादी इमान खुदा पर लाये तब उसका मज़ा पाए ,और हक़ व बातिल में फ़र्क़ करे। और अपने एतेक़ाद को गलत समझे।
बारे ऐसी ऐसी नसीहते सुन कर उस संग दिल का दिल मुलायम हुआ। खुदा के फ़ज़ल व कर्म से रोने लगी और बोली : अच्छा मुझे भी अपना दीन सिखाओ। मैंने कलमा तलक़ीन किया। उसने सच्चे दिल से पढ़ा। और तोबा अस्तखफार कर कर मुस्लमान हुई। तब मैं उसके पाव पड़ा। सुबह तक कलमा पढ़ती और अस्तखफार करती रही। फिर कहने लगी : भला मैंने तुम्हारा दीन क़ुबूल किया ,लेकिन माँ बाप काफिर है ,उनका क्या इलाज ? मैंने कहा : तुम्हारी बला से जो जैसा करेगा वैसा पायेगा। बोली की मुझे चाचा के बेटे से मंसूब किया है। और वह बुतपरस्त है। कल को खुदा न ख्वास्ता बियाह हो और वह काफिर मुझसे मिले और उसका नुत्फा मेरे पेट में ठहर जाये तो बड़ी क़बाहत है। इसकी फ़िक्र अभी से किया चाहिए की इस बला से निजात पाऊं। मैंने कहा : तुम बात तो सही कह रही हो जो मिज़ाज में आये सो करो ,बोली की मैं अब यहाँ न रहूंगी ,कही निकल जाउंगी। मैंने पूछा : किस सूरत से भाग पाओगी और कहा जाओगी / जवाब दिया की पहले तुम मेरे पास से जाओ ,मुसलमानो के साथ सरा में जा रहो। जो जहाज़ अज्म की तरफ चले मुझे खबर करना। मैं इस वास्ते दायी को तुम्हारे पास अक्सर भेजा करुँगी। जब तुम कहला भेजोगे। मैं निकल कर आउंगी और कश्ती पर सवार हो कर चली जाउंगी ,इन कम्बख्त बे दीनो के हाथ से मुख्लिसि पाऊँगी। मैंने कहा : तुम्हारी जान व इमां पर क़ुर्बान हुआ ,दायी को क्या करोगी ? बोली : उसकी फ़िक्र आसान है एक पियाले में ज़हर पीला दूंगी। यही सलाह तये हुई ,जब दिन हुआ मैं कारवां सरा में गया। एक कमरा किराये पर लिया। जब दो महीने में सौदागर रोम व शान व अस्फहान (जगह का नाम) के जमा हुए इरादा कोच काचरी की राह से किया और अपना असबाब जहाज़ पर चढाने लगा। एक जगह रहने से अक्सर आशना सूरत हो गए थे ,मुझसे कहने लगे : क्यू साहब ! तुम भी चलो न यहाँ कफरसतान में कब तक रहोगे ? मैंने जवाब दिया की मेरे पास क्या है जो अपने वतन को जाऊं ? यही एक लोंडी , एक कुत्ता एक संदूक बिसात में रखता हु। अगर थोड़ी सी जगह बैठ रहने को दो ,तो मेरी खातिर जमा हो मैं भी सवार हूँ।
सौदागरों ने एक कोठरी मेरे तहत कर दी ,मैंने उस कँवल का रूपया भर दिया। दिल जमी करकर किसी बहाने से दायी के घर गया और कहा : अम्मा तुझसे रुखसत होने आया हु ,अब वतन को जाता हु ,अगर तेरी तवज्जह से एक नज़र मलका को देख लू तो बड़ी बात है। बारे दायी ने क़ुबूल किया। मैंने कहा : मैं रात को आऊंगा ,फलाने मकान पर खड़ा रहूँगा। बोली : अच्छा मैं कह कर सरा में गया। संदूक और बिछोने उठा कर जहाज़ में लाया और न खुदा को सौंप कर कहा : कल फज्र को अपनी कनीज़ को लेकर आऊंगा। न खुदा बोला : जल्द आना सुबह हम लंगर उठा देंगे .मैंने कहा : बहुत खूब। जब रात हुई ,इसी मकान पर जहा दायी से वादा किया था ,जाकर खड़ा रहा। पहर रात गए महल का दरवाज़ा खुला और मलका मैले कुचैले कपडे पहने ,एक पेटी जवाहर की लिए बाहर निकली। वह पिटारी मेरे हवाले की और साथ चली। सुबह होते किनारे दरिया के हम पहुंचे। एक लंबोट पर सवार हो कर जहाज़ में जा उतरा। यह वफ़ा दार कुत्ता भी साथ था। जब सुबह खूब रोशन हुई ,लंगर उठाया और रवाना हुए . बा खातिर जमा चले जाते थे। एक बंदर से आवाज़ तोपों की शिक्क की आयी। सब हैरान व फ़िक्र मंद हुए। जहाज़ को लंगर किया और आपस में चर्चा होने लगा की शाह बंदर कुछ दगा करेगा तोप छोड़ने का क्या सबब है ?
अचानक सब सौदागरों के पास खूब सूरत लोंड़िया थी। शाह बन्दर के खौफ से मुबादा छीन ले सबने कनीज़ को संदूको में बंद किया। मैंने भी ऐसा ही किया की शहज़ादी को संदूक में बिठा कर ताला लगा दिया। अरसे में शाह बनदर एक घुरब पर बा जमा नौकर चाकर बैठा हुआ नज़र आया। आते आते जहाज़ पर आ चढ़ा। शायद उसके आने का यह सबब था की बादशाह को दायी के मरने की और मलका के गायब होने की जब खबर मालूम हुई ,मारे गैरत के उसका नाम न लिया ,मगर शाह बंदर को हुक्म किया की मैंने सुना है अजमी सौदागरों के पास लोंड़िया खूब खूब है। सो मैं शहज़ादी के वास्ते लिया चाहता हु। तुम उनको रोक कर जितनी लोंडिया जहाज़ में हु ,हुज़ूर में हाज़िर करोगे। उन्हें देख कर जो पसंद आएगी उनकी क़ीमत दी जाएगी नहीं तो वापस होंगी।
हुक्म बादशाह के ,यह शाह बनदर इसलिए जहाज़ पर आया। और मेरे नज़दीक एक और शख्स था ,उसके पास भी एक बांदी क़ुबूल सूरत संदूक में बंद थी। शाही बंदर उसी संदूक पर आकर बैठा और लड़कियों को निकलवाने लगा। मैंने खुदा का शुक्र किया की भला बादशाह ज़ादी का मज़कूर नहीं। गर्ज़ी जितनी लड़किया पाएं। शाही बदंर के आदमियों ने नाव पर चढ़ाये। और खुद शाह बंदर जिस संदूक पर बैठा था। उसके मालिक से भी हँसते हँसते पूछा की तेरे पास भी लड़की थी ? इस अहमक़ ने कहा : आपके क़दमों की सौगन्द मैंने ही यह काम नहीं किया सभी ने तुम्हरे डर से लड़किया संदूको में छिपाये है। शाह बंदर ने यह बात सुन कर सब संदूको को झाड़ा। ,मेरा भी संदूक खोला और मलका को निकाल कर सबके साथ ले गया। अजब तरह की मायूसी हुई की यह ऐसी पेश आयी की तेरी जान मुफ्त गयी ,और मलका से देखिये क्या सुलूक करे।
उसकी फ़िक्र में अपनी जान भी भूल गया। सरे दिन रात खुदा से दुआ मांगता रहा। जब बड़ी फज्र हुई ,सब लड़कियों को कश्ती पर सवार लाये। सौदागर खुश हुए अपनी अपनी कनीज़ के लिए। सब आईया ,मगर एक मलका उनमे न थी। मैंने पूछा के मेरी लड़की नहीं आयी ,उसका क्या सबब है ? उन्होंने जवाब दिया की हम वाक़िफ़ नहीं ,शायद बादशाह ने पसंद की होगी। सब सौदागर मुझे तसल्ली और दिलासा देने लगे की खैर ,जो हुआ सो हुआ ,तू कुढ़ मत। उसकी क़ीमत हम सब बहरी करके तुझे देंगे। .मेरे हवास बाख्ता हो गए। मैंने कहा की अब मैं अज्म नहीं जाने का। कश्ती वालो से कहा : यारो ! मुझे भी अपने साथ ले चलो ,किनारे पर उतारो ,वे राज़ी हुए .मैं जहाज़ से उतर कर ,घुराब में आ बैठा। यह कुत्ता भी मेरे साथ चला आया।
मैं बंदर में पंहुचा ,एक संदूकचा जवाहर का जो मलका अपने साथ लायी थी ,उसे तो रख लिया और सब असबाब शै बंदर के नोकरो को दिया। और मैं जासूसी में हर कही फिरने लगा की शायद खबर मलका की पाव ,लेकिन हरगिज़ सुराख़ न मिला और न उस बात का पता चला। एक रात को किसी मकर से बादशाह के भी महल में गया और ढूंढा ,कुछ खबर न मिली। क़रीब एक महीने के शहर के कूचे और मोहल्ले छान मरे और उस ग़म से अपने आपको हिलकात के क़रीब पहुंचाया और सौदाई सा फिरने लगा। आखिर अपने दिल में ख्याल किया की ग़ालिब है शाह बंदर ले घर में मेरी बादशाह ज़ादी हो तो हो नहीं तो और कही। शाह बनदर की हवेली के गिर्द पेश देखता फिरता था की कहि से भी जाने की राह पाऊं तो अंदर जाऊं।